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अमृत का पर्यायवाची शब्द

अमृत का पर्यायवाची शब्द या अमृत का समानार्थी शब्द (amrit ka paryayvachi shabd / amrit ka samanarthi shabd) के बारे में इस लेख में बडे ही विस्तार से बताया गया है तो आप लेख को देख सकते है 

अमृत का पर्यायवाची शब्द या अमृत का समानार्थी शब्द (amrit ka paryayvachi shabd / amrit ka samanarthi shabd)

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शब्द (shabd) पर्यायवाची शब्द या समानार्थी शब्द (paryayvachi shabd / samanarthi shabd)
अमृतजीवनोदक, अमिय, सुधा, देवाहार, सुरभोग, अमी, पीयूष, आबेहयात, मधु, सोम ।
अमृत in Hindijivanodak, amiy, sudha, devahar, surabhog, ami, piyoosh, aabehayat, madhu, som .
अमृत in Englishnectar, Honeydew, amrit, ambrosia, elixir of life.

अमृत का अर्थ हिंदी में // Meaning of Amrit in Hindi

‌‌‌दोस्तो अमृत उसे कहते है जीसका सेवन करने के बाद में व्यक्ति सदा के लिए अमर हो जाता है । यानि वह कभी नही मरता है ऐसे प्रदार्थो को अमृत कहते है । मगर इसके अलावा भी बहुत से ऐसे अन्य प्रदार्थ है जिन्हे अमृत कहा जाता है जैसे

अमृत के सभी अर्थ –

  • जिसका सेवन करने के बाद में व्यक्ति मरता न   ‌‌‌हो ।
  • वह जो न मरने वाला हो ।
  • एक ऐसी वस्तु जीसका उपयोग मनुष्य खाने के लिए करता है और वह बहुत ही स्वाद भरी होती है ।
  • फुलो में जो रस होता है ।
  • वह भोजन जिसका उपयोग देव करते है यानि देवो का भोजन ।
  • एक तरह का पेय पदार्थ ।
  • सुधा रस।

इस तरह से अमृत को अनेक अर्थो के रूप में जाना जाता है ।

‌‌‌अमृत शब्द के वाक्य में प्रयोग

  • देवो और राक्षसो ने अमृत के लिए समुंद्र मंथन किया ।
  • जहां अमृत का हर कोई सेवन करना चाहता है वही जहर का सेवन शिव ने किया ।
  • राहुल तो हमेशा ही फुलो से अमृत निकाल कर पीता है  ।
  • आजकल अमृत से बहुत ही अच्छी अच्छी परफ्यूम बनाई जाने लगी है ।

अमृत के पर्यायवाची शब्दो ‌‌‌का वाक्य में प्रयोग

  • जैसे ही राहुल ने अमृत का सेवन किया मानो वह अमर हो गया हो  ।
  • महान संत के लिए सुधा रस का इंतजाम भी करना होता है ।
  • जब पकंज के यहां यज्ञ था तो उसने मुध रस का इंतजाम किया ।
  • किशोरी के विवाह पर सभी को अमिय प्रदार्थ दिया गया था ।

अमृत से जुडे रोचक तथ्य // Interesting facts about Amrit in Hindi

  • ‌‌‌क्या आपको मालूम है की अमृत शब्द का सबसे पहले प्रयोग ऋग्वेद में हुआ था ।
  • क्या आपको मालूम है की भारत के जो प्रसिद्ध ग्रथ है उनमें बताया जाता है की अमृत एक ऐसा तरल प्रदार्थ है जो अमरत्व प्रदान करता है ।
  • क्या आपको मालूम है की हिंदू धर्म की एक प्रोराणिक कथा है जिसे समुद्र मन्थन के नाम से जाना ‌‌‌जाता है । इस कथा में बताया गया है की कुल 14 रत्न प्राप्त हुए थे उनमे से ही 14 नम्बर का रत्न अमृत था ।
  • ‌‌‌क्या आपको मालूम है की गाय के दूध को अमृत कहा जाता है क्योकी इसके दूध को पी कर अनेक बच्चो की जान बचती है ।
  • ‌‌‌क्या आपको मालूम है की इंडोनेशिया में एक मंदिर है जिसका नाम कंडी सुकुह है और ऐसा बताया जाता है की इस मंदिर में एक कलश है जो की पानी से भरा है और यह पानी कई वर्षो से नही सुख पाया है इसी आधार पर कहा जाता है की यह कोई साधारण पानी नही बल्की अमृत है ।
  • ‌‌‌क्या आपको मालूम है की अमृत कलश इंडोनेशिया के एक मंदिर में है ।
  • क्या आपको मालूम है की साधारण पानी को भी अमृत कहा जाता है ।
  • क्या आपको मालूम है की आज हमारी पृथ्वी पर विभिन्न तरह के पुष्प है और इन पुष्पो से भी अलग अलग तरह का रस निकलता है जिसे भी अमृत कहा जाता है ।
  • क्या आपको मालूम है की ‌‌‌मधू अपने छते में मधू रस को इकट्ठा करती है जिसे भी अमृत कहा जाता है ।

अमृत क्या है

‌‌‌दोस्तो अमृत एक तरह का पेय प्रदार्थ होता है जीसका सेवन करने पर व्यक्ति अमर हो जाता है । भारतीय ग्रंथो में इसका बडे ही विस्तार से वर्णन किया जा चुका है और कहा जाता है की यह एक तरह का रसायन होता है जो की अमरत्व प्रदान करता है ।

दूसरा – अमृत वह प्रदार्थ होता है जिसका निर्माण समुंद्र मंथन मे ‌‌‌हुआ था क्योकी समुंद्र मंथन देव और दानव साथ साथ कर रहे थे जिनमे से कुल 14 रत्न प्राप्त हुए थे जैसे महालक्ष्मी, विष ‌‌‌जिसे शिव ने पीया था, और इसी तरह से 14 नम्बर पर जो रत्न प्राप्त हुआ था वह अमृत था ।

‌‌‌मगर आज अमृत केवल उसी रत्न को नही कहा जाता है बल्की उस प्रदार्थ को कहा जाता है जो की पीने मात्र ऐसा लगे की अमृता प्रदान कर चुका है । जिसका एक अलग ही स्वाद होता है और जीसे खाने पर बहुत ही स्वादिष्ट लगता है और रोम रोम खिल उठता है । इसके अलावा उस प्रदार्थ को भी अमृत कहा जाता है जो अपने चारो ‌‌‌ओर सुगंधित फैलाता रहता है । इस तरह से अमृत की परिभाषा हो सकती है –

अमृत की परिभाषा

एक ऐसा तरल प्रदार्थ जिसका वर्णन अनेक ग्रंथो में किया गया है और जीसका सेवन करने वाला जीव अमर हो जाता है यानि उसका कभी अंत नही होता है अमृत कहलाता है ।

‌‌‌अमृत की उत्पत्ति कैसे हुई

‌‌‌दोस्तो अमृत की उत्पत्ति समुंद्र मंथन से जुडी है जो कथा कुछ इस तरह से थी –

एक समय की बात है महादेव अपने स्थान पर तप कर रहे थे और उनके भग्तो में से ही एक महान ऋषी उनके दर्शन करने के लिए जा रहे थे जिनका नाम दुर्वाषा ऋषि था । जब दुर्वाषा ने अपनी यात्री शुरू की तो बिच में अनेक तरह के ‌‌‌स्थानो से होकर उन्हे जाना पड रहा था और इसी तरह से यात्रा करते हुए वे अपने शिष्यो के साथ इंद्रलोक में जा पहुंचे थे ।

तभी भगवान इंद्र वहां पर अपना कार्यकाल कर रहे थे मगर जैसे ही उनकी नजर दुर्वाषा पर पडी तो इंद्र उनके पास ‌‌‌चला गया और उन्हे प्रणाम करने लगा । दुर्वाषा बडे ही शक्तिशाली ऋषि थे जो ‌‌‌अपनी शिक्यिो से कुछ भी कर सकते थे । मगर इंद्र का प्रणाम करना दुर्वाषा को बडा अच्छा लगा और यही कारण था की दुर्वाषा ने इंद्र को एक पुष्प प्रदान किया था । ‌‌‌

इंद्र ने पुष्प की तरफ ज्यादा ध्यान नही दिया और एक साधारण पुष्प समझ कर उसे अपने गजराज पर ले जाकर रख दिया । यह देख कर ऋषि को बडा ‌‌‌बुरा लगा मगर ऋषि ने कुछ नही किया । कुछ समय के बाद में दुर्वाषा की नजर वापस उसी पुष्प पर पडी तो उन्होने देखा की गजराज उस पुष्प को जमीन पर गिरा चुका ‌‌‌है और उसके उपर पैर रखते हुए जगराज वहां से जाने लगा है ।

यह देख कर दुर्वाषा को अपना अपमान महसुस होने लगा । इसके साथ ही दुर्वाषा के शिष्य भी उनके साथ थे और पुष्प की यह हालत देख कर दुर्वाषा क्रोधित हो गए थे और इंद्र को श्राप दे दिया की तुम सभी देवताओ की शक्ति नष्ट हो जाएगी और असुर तुम्हारे ‌‌‌पर विजय प्राप्त कर लेगे ।

श्राप सुन कर इंद्र तुरन्त दुर्वाषा के चरणो में जा गिरे और उनसे माफी मागने लगे । तब जाकर दुर्वाषा का क्रोध शांत हो सकता तब उन्होने बताया की यह कोई साधारण पुष्प नही बल्की सृष्टी के पालनहार भगवान विष्णु का पारिजात पुष्प था जिसे तुमने नष्ट कर दिया ।

यह सुन कर इंद्र ने स्वयं सोचा की उससे बहुत बडी गलती हो गई मगर अब क्या हो ‌‌‌सकता था । इस घटना के बाद में दुर्वाषा तो वहां से चले गए । कुछ दिन बितने के बाद में एक दिन देवताओ के स्वर्ग लोक पर आक्रमण हो गया और यह आक्रमण असुरो ने किया था ।

दुर्वाषा का ‌‌‌श्राप आज तक खाली नही गया था तो उस दिन कैसे जाता जिसके कारण से नतीजा यह हुआ की इंद्र और बाकी देव हार गए और उनके पिछे असुर पडे हुए थे । जिसके कारण से इंद्र और देव अपने प्राण बचाते हुए इधर उधर फिरने लगे थे ।

बहुत अधिक थक हार कर सभी देव अपना प्राण बचाते हुए विष्णु जी के पास जा पहुंचे और इस ‌‌‌घटना के बारे में बडे ही विस्तार से बताया । और इंद्र ने कहा की भगवान मुझसे ‌‌‌गलती हो गई और मेरी गलती की सजा सभी देवो को मिल रही है आप ही हमारी मदद करे । तब विष्णु ने समुंद्र मंथन के बारे में बताया ।

मगर यह आसान नही था क्योकी देव इसे अकेला पूरा नही कर सकते थे जिसके कारण से देवो ने असुरो का ‌‌‌साथ लिया था ।

इस तरह से असुरो के साथ देवो ने मिल कर समुद्र मंथन की क्रिया प्रारंभ कर दी । जिसमें समय समय पर रत्न प्राप्त हो रहे थे जिन्हे हर कोई ग्रहण कर रहा था । इस तरह से समुद्र मंथन से कुल 14 रत्न प्राप्त हुए थे और इसी में से ‌‌‌14 वा रत्न अमृत था ।

अमृत प्राप्ती की कथा

अमृत ‌‌‌की 13 ‌‌‌वे रत्न के साथ ‌‌‌साथ प्राप्त हुई थी । दरसल 13 वा रत्न भगवान धन्वंतरि थे और इन्होने अपने हाथो में एक कलश ले रखा था जिसमें 14 रत्न था और यह रत्न अमृत था । इस तरह से अमृत की उत्पत्ति हुई थी ।

अमृत का निमार्ण कैसे हुआ?

दोस्तो आपको मालूम है की फुलो के रस को अमृत कहा जाता है क्योकी मधु भी फुलो के रस से बनती है जिसके कारण से उसे भी अमृत कहा जाता है इसी आधार पर समुंद्र मंथन से प्राप्त अमृत का निमार्ण हुआ था ।

दरसल अमृत प्राप्त के बिच मे कुल 13 रत्न और थे जिनकी प्राप्त में ‌‌‌भी काफी अधिक समय लग गया था और समुंद्र मंथन में एक पर्वत का उपयोग हो रहा था यह आपको मालूम होगा । मगर आपको यह नही मालूम की उस पर्वत पर भी अनेक तरह के पेड पौधे थे ।

जिनका रस जब निकलता हुआ समुद्र में गिरता गया तो इस बिच में अनेक तरह के द्रव प्रदार्थो से रासायनिक क्रिया हो गई थी । जिसके कारण ‌‌‌से ही अमृत को रासायन कहा जाता है । और इस तरह से जब तक 13 रत्न प्राप्त हुए तब तक की क्रिया के बिच में रासायनिक क्रियाओ के होने के कारण से अमृत पूरी तरह से बन गया था ।

मगर इसमे रोचक बात यह भी है की यह अमृत अपने आप ही समुद्र में रखे कलश में इकट्ठा हो गया था । इस तरह से अमृत का निर्माण हुआ ‌‌‌था ।

अमृत के प्रकार

दोस्तो अमृत के वैसे तो कोई प्रकार नही होते है मगर हम अमृत के प्रकार मान सकते क्योकी अमृत शब्द के अर्थ है – फूलों का सार, फूलों का मधु, देवों का भोजन आदी होता है । क्योकी फूलो का सार से मतलब होता है की फुलो में जो रस होता है और फूलो के इस रस का उपयोग कर कर मधुमक्खी मधु मधु ‌‌‌रस का ‌‌‌निमार्ण करती है जिसके कारण से उस मुध को भी अमृत कह सकते है । इस आधार पर अमृति तीन प्रकार के होते है जो है –

1. समुद्र मंथन का अमृत या अमृत्व प्रदान करने वाला प्रदार्थ

यह वह रस होता है जिसके बारे में समुद्र मंथन में 14 रत्न के रूप में बताया गया है । ‌‌‌असली अमृत तो यही होती है ।

2.फूलो का रस

‌‌‌दोस्तो अमृत का अर्थ होता है की एक ऐसा पेय पदार्थ जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है और आनन्द पैदा करते है । क्योकी यह दोनो काम फुलो के रस में होता है और अमृत शब्द के अर्थ के रूप में भी फूल के रस को जाना जाता है तो यह भी एक अमृत का प्रकार हो सकता है ।

3.मधुमक्खी का मधू रस

‌‌‌दोस्तो यह अमृत मधुमक्खी बनाती है जिसके लिए यह फूलो ‌‌‌के रस ‌‌‌को उपयोग में लेती है और इसे अपने शरीर में इकट्ठा कर कर अपनी लार मिला कर अपने छते मे ढाल देती है । जो की काफी समय तक रहने के बाद में मधू बन जाता है । जिसे भी आज अमृत कहा जाता है और यह एक अमृत का प्रकार हो सकता है ।

‌‌‌अमृत कलश

‌‌‌दोस्तो ऐसा ‌‌‌दावा किया जाता है की कंडी सुकुह नामक एक मंदिर है जिसमें एक कलश है जिसे अमृत कलश के नाम से जाना जाता है । यह कलश हमारे देश में नही बल्की इंडोनेशिया में बताया जाता है । इसके साथ ही यह तक बताया जाता है की जब समुंद्र मंथन हो रहा था और उसमें से कुल 14 रत्न थे और 14 वे रत्न के रूप में ‌‌‌कलश प्राप्त हुआ था जिसमें अमृत था वह आज भी इंडोनेशिया में है ।

आपकी जानकारी के लिए बता दे की इस कलश के बारे में जब खोज हुई थी तो देखने में मंदिर में कही कलश नही दिख था बल्की एक दिवार थी जिस पर समुंद्र मंथन के समय जो प्रक्रिया थी उसका चित्र बना हुआ था । जब इस दिवारे को तोडा गया तो इसके ‌‌‌अंदर यह कलश प्राप्त हुआ था ।

‌‌‌इस तरह से हमने अमृत का पर्यायवाची शब्द या अमृत का समानार्थी शब्द के बारे में जान लिया है । क्या आपको लेख पसंद आया ।

क्या आपने कभी अमृत के पर्यायवाची शब्दो का प्रयोग किया है? बताना न भूले ।

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