खरगोश की कहानियां खुद पर भरोशा रखो कामयाबी जरूर मिलेगी ।


एक
बार जंगल के अंदर दो खरगोश रहते थे । एक खरगोश का नाम मनकु था और दूसरे का नाम सनुक
था। मनकू एक होशियार खरगोश था। वहीं सनकू बात बात के अंदर शक करता था। काफी साल तक
वे मजे से जंगल मे रह रहे थे । लेकिन एक साल जब बरसात नहीं हूई और सब जीव उस जंगल को
छोड़कर दूसरे जंगल मे जाने लगे ।
‌‌‌दोनों खरगोंशों ने भी दूसरे जंगल के अंदर
जाने का निश्चय कर लिया और सुबह ही वो दोनों निकल पड़े ।

‌‌‌सनकू
बोला ……. यार तुझे पता है कि इस जंगल के बाहर की तरफ एक नदी पड़ती है क्या हम दानों
उस नदी से पार हो जाएंगे । मुझे तो शंका लगती है कि कहीं हम नदी के बीच मे ही डूब कर
ना मर जाएं ?

……….. नहीं यार खुद पर विश्वास रख सब ठीक हो जाएगा ।
‌‌‌और उसके बाद वे
धीरे धीरे चलकर नदी के पास पहुंच जाते हैं। सनकू बोलता है ……… यार नदी का बहाव
बहुत तेज है। हम इसको पार नहीं कर पाएंगे । अब क्या होगा ?
………….
अरे कुछ नहीं होगा जरा सोचने दे । और उसके
बाद मनकू हीं से एक लकड़ी का टुकड़ा लेकर आता है और फिर उस पर सवार होकर नदी
के पार चला ‌‌‌जाता है। बेचारा सनकू वहीं पर रह जाता है।
……….
अरे जिस तरह से मैं नदी को पार किया हूं तू भी उसी तरह से नदी पार कर सकता है। जल्दी
कर । उसके बाद सनकू कुछ सोचता है और एक लकड़ी को नदी के अंदर डालकर उस लकड़ी पर सवार
हो जाता है। लेकिन जब वह नदी के बीच मे होता है तो डर जाता है और लकड़ी के

‌‌‌उपर से गिर जाता
है। और डूबने लगता है।
………..
अरे भाई बचाओ ………. सनकू जोर जोर से चिल्लाता है। मनकू उधर से देखता है और किसी
बेल के आगे पत्थर का टुकड़ा बांध कर तेजी से नदी के अंदर फेंक देता है।
…………..
तुम इस बेल के टुकड़े को पकड़ कर आ जाओ ।
‌‌‌और
उसके बाद सनकू बेल के टुकड़े को पकड़ कर नदी के तट पर आ जाता है।
—————यार
मनकू एक बात समझ मे नहीं आती कि मैं तेरे से बड़ा हूं और हष्ट पुष्ट भी हूं उसके बाद
भी नदी पार नहीं कर पाया और तू यह सब कैसे कर पाया ?
‌‌‌………..भाई
बात बड़े छोटे की नहीं है। बात विश्वास की है। अपने लक्ष्य के अंदर कामयाब होने के
लिए खुद पर विश्वास होना बेहद जरूरी है। तुझे यही नहीं पता की तू कर पायेगा कि नहीं
। तुझे खुद पर ही भरोशा नहीं है। अपनी ताकत पर भरोशा नहीं है। इसलिए तू कामयाब नहीं
हो पाया । लेकिन मुझे खुद पर ‌‌‌भरोशा था। इस वजह से मैं कामयाब हो पाया हूं।

‌‌‌जो कभी हार नहीं मानता



दोस्तों एक जंगल के
अंदर एक खरगोंशों का झुंड रहता था। एक बार सारे खारगोशों के अंदर प्रतियोगिता हुई की
जो नदी के उस पार छलांक लगा देगा । उसे 100 सोने के सिक्के दिए जाएंगे । उस झूंड के
अंदर बहुत सारे जवान खरगोश भी थे ।
‌‌‌और
उसी झूंड के अंदर एक मरियल सा खरगोश भी था। जिसका नाम भी मरियल रख दिया गया था। सब
खरगोश एक बूढे खरगोश के पास नाम लिखवाने के लिए आए हुए थे । तो वह मरियल खरगोश भी आ
पहुंचा ।
‌‌‌………..अरे
तू नदी के उपर से छलांग लगाएगा । अबे मर जाएगा । रहनेदें । सारे जवान और हष्ट पुष्ट
खरगोस बोले ।
………… कोई बात
नहीं है। मैं हार नहीं मानता हूं । कोशिश करना कोई बुरी बात नहीं है।
…….. ठीक है भाई
तेरी मर्जी ।
‌‌‌इस प्रतियोगिता
मे कुल 5 खरगोशों ने हिस्सा लिया और दूसरे दिन प्रतियोगिता आयोजित हुई। खरगोशों का
झुंड वहां पर खड़ा था और यह देख रहा था कि कौन इतना ताकतवर है कि वह इस नदी के उस पार
जा सकता है।
‌‌‌सबसे पहले मनिक
नाम का खरगोश आया और तेजी से कूदा लेकिन अफसोस की वो नदी के बीच मे ही गिर गया । उसके
बाद दूसरे खरगोशों ने उसको बाहर निकाला ।
……….. नहीं भाई
यह बहुत मुश्किल है।वह रोते हुए बोला । ………. मेरा यकीन मानो ट्राई मत करो और
हार मान लो ।
‌‌‌उसके बाद धनिक नामक
एक खरगोश आया और जैसे ही उसने नदी के उपर से छलांग लगानी चाही। नदी के दूसरे तट के
पास जा गिरा और उसको एक मगरमच्छ ने निवाला बना लिया ।
……………….
नहीं नहीं बहुत बुरा हुआ ।
‌‌‌सनु और धुन खरगोश
जोर से बोले …………… हम यह प्रतियोगिता नहीं कर सकते हैं। हम हार मान रहे हैं।
और मरियल तुम तो मत ही करो वरना मारे जाओगे ।
‌‌‌………………
मैं हार नहीं मानता हूं । और प्रयास जरूर करूंगा और उसके बाद मरियल ने तेजी से नदी
के उपर छलांग लगादी वह नदी के पार तो जा गिरा लेकिन घायल हो गया ।
———–‌‌‌तुम यह सब कैसे कर पाए ? दूसरे खरगोश
उससे पूछने लगे ।
‌‌‌…….. सच बात
तो यह है कि जो इंसान हार नहीं मानता है वह भले ही हार गया हो लेकिन वह कभी भी हारता
नहीं है। बार बार असफल होने का मतलब यह नहीं है किे आप हार गए हो । वरन इसका मतलब है
कि आप कुछ सीख रहे हो ।‌‌‌मैं रात को यहां पर आया था । मैंने प्रयास किया लेकिन मैं
खुद तीन बार नदी के अंदर गिर गया था। लेकिन मैंने हार नहीं मानी इसी लिए तो आज जीत
गया हूं । जीत वो ही सकता है जो हार को मानने के लिए तैयार नहीं हो ।

‌‌‌हार और जीत क्या
है?


एक बार धनकू खरगोश
और मनकू खरगोश जंगल के अंदर कहीं पर जा रहे थे । रस्ते के अंदर धनकू ने पूछा भाई हार
और जीत क्या होती है? मनकू ने उसे उस वक्त तो कोई जवाब नहीं दिया । लेकिन कुछ दिन बीत
जाने के बाद उनके जंगल के अंदर एक शेर आ गया और वह एक एक करके सब खरगोशों को ‌‌‌खाने
लगा ।
‌‌‌मनकू धनकू के पास आया
और बोला ………… चलो भाई शैर को जंगल
से दूर भगाकर आते हैं ?

……… लेकिन शेर
तो हमको खा जाएगा ?
……… नहीं खाएगा
और उसके बाद मनकू ने धनकू को अपने विचार बताए। दोनो शेर की गूफा के पास चले गए ।

‌‌‌धनकू ने गुफा के पास हिरन की आवाज निकाली
। और उस आवाज को सुनकर शैर बाहर आ गया और इधर उधर देखने लगा । बेचारा धनकू जो झाड़ियों
के अंदर छुपा हुआ था। उसको शैर ने देख लिया और उसकी तरफ आने लगा । धनकू शेर को अपनी
तरफ आता देख । डर गया और भागने लगा ।
‌‌‌शेर
उसके पीछे हो लिया । धनकू पसीने पसीने हो चुका था और अब उसे लगने लगा था कि आज वह जिंदगी
की जंग हार जाएगा । कुछ नहीं हो सकता । और उसके बाद वह अचानक से वहां पर गिर गया ।शेर
ने उसको पकड़लिया ।
…………रूको यह
मेरा शिकार है ….. और दूर दूसरे शेर की आवाज सुनाई दी ।
शेर बूढ़ा था और डर
गया।
———-
‌‌‌लेकिन तुम सामने तो आओ । पहले शेर ने
बोला
………उसकी अभी
जरूरत नहीं है। यह मेरा जंगल है और यहां से चले जाओ वरना हम सब शेर मिलकर तुझे मार
देंगे ।
‌‌‌अभी मेरे साथी बाहर
गए हुए हैं।
और उसके बाद शेर धनकू
को छोड़कर भाग गया ।
मनकू फिर निकल कर आया
और बोला
………….भाई मैंने
तेरे को बोला था कि शेर को दिखना मत और यदि दिख भी गए तो बिल के अंदर घुस जाते ।


……… भाई वो सब
याद नहीं आया ।
‌‌‌तू जीत सकता था।
लेकिन तूने मान लिया कि अब मुझे कोई नहीं बचा सकता है। मेरे भाई हार और जीत हमारी सोच
पर निर्भर है। मान लिया तो हार और ठान लिया तो जीत ।

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